इंदौर
कुछ अधिकारों का आनंद लेना या उन्हें ज़बरन लागू करना हमेशा ज़रूरी नहीं होता है, भले ही उनकी संविधान द्वारा गारंटी दी गई हो, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक किशोर जोड़े के लिए सुरक्षा की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते वक्त कहा, जो अपने परिवार द्वारा आपत्ति जताने के बावजूद एक साथ रह रहे हैं। (Constitutional rights do not always need to be enforced forcibly – Madhya Pradesh High Court)
14 मार्च को उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए 19 वर्षीय जोड़े को सुरक्षा प्रदान की, साथ ही “इन दिनों युवाओं द्वारा चुने जा रहे विकल्पों पर चिंता” व्यक्त की।
न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने कहा, “हालांकि इस विषय पर सोचने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि भले ही कुछ अधिकार संविधान द्वारा दिये गए हैं, लेकिन उनका आनंद लेना और उन्हें लागू करना हर बार ज़रूरी नहीं है।”
अदालत ने कहा कि “भारत ऐसा देश जहां राज्य बेरोजगारों और अशिक्षित लोगों को कोई भत्ता नही दिया जाता”। “अगर आप अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं हैं, तो आपको अपनी और अपने साथी के लिये जीविका खुद कमानी होगी और इससे स्वाभाविक रूप से स्कूल या कॉलेज जाने की गुंजाईश खत्म हो जाती है, और अगर आप अपनी पसंद से कम उम्र में ज़िंदगी की इस जद्दोजहद में उतरते हैं , तो न सिर्फ आपके ज़िंदगी के दूसरे मौकों का मज़ा लेने की संभावनाओ पर असर होता है, बल्कि समाज में आपकी स्वीकार्यता भी कम हो जाती है। ”
यह भी पढ़ें
सुप्रिया श्रीनेत के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी चुनाव आयोग के दरबार में
अदालत ने कम उम्र में गर्भवती होने की हालात में महिला को होने वाली मुश्किलों पर चिंता जताई और सावधानी बरतने की सलाह दी। अदालत ने यह भी कहा, “एक लड़की के लिए यह कहीं ज़्यादा मुश्किल है जो कम उम्र में गर्भवती हो सकती है, जिससे उसके जीवन में और जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं। इस लिये, ऐसे विकल्पों को चुनते समय और ऐसे अधिकारों को लागू करते समय विवेक की सलाह दी जाती है, क्योंकि अधिकारों का होना एक बात है और उन्हें लागू करना दूसरी बात है। ”
हालाँकि, अदालत ने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए इस जोडे को पुलिस सुरक्षा प्रदान की, जिसमें कहा गया था कि दो वयस्कों वाले जोड़े को एक साथ रहने का अधिकार है, भले ही वे कानूनी रूप से शादी के लिए पात्र न हों।